शिव अतुलनीय और असाधारण देवता है महादेव का व्यक्तित्व असीमित है शुद्ध चेतना का नाम ही शिव है तथा सर्व्वोच चेतना को ही शंकर कहा
गया है विशुद्ध प्रज्ञा का ही नाम शंकर है शिव तीनो लोको के स्वामी है
भगवन शंकर जगद्गुरु है और मंगल शिरोमणि के रूप में विख्यात है उनके दिव्य चरणो का ध्यान ब्रह्मा ,नारद, भृगु ,योगी, यति,सन्यासी ,औघड़ और
समस्त चराचर के प्राणी करते है भगवान शिव एक है पर अनेक रूपों में उन्हें कभी आशुतोष कभी महादेव कभी रूद्रतो कभी महामृत्युंजय के नाम से पुकारा जाता है शिव के १०८ नाम संसार में ज्यादा प्रचलित है उनका कोई भी नाम निरर्थक नहीं है सभी नामो में अलग -अलग गुण छिपे है भक्त अपने भावो के अनुसार उन्ही नामो से भजते हैशिव अपने भक्तो के समस्त पाप और त्रितापो का नाश करने में पूर्ण समर्थ है |
गया है विशुद्ध प्रज्ञा का ही नाम शंकर है शिव तीनो लोको के स्वामी है
भगवन शंकर जगद्गुरु है और मंगल शिरोमणि के रूप में विख्यात है उनके दिव्य चरणो का ध्यान ब्रह्मा ,नारद, भृगु ,योगी, यति,सन्यासी ,औघड़ और
समस्त चराचर के प्राणी करते है भगवान शिव एक है पर अनेक रूपों में उन्हें कभी आशुतोष कभी महादेव कभी रूद्रतो कभी महामृत्युंजय के नाम से पुकारा जाता है शिव के १०८ नाम संसार में ज्यादा प्रचलित है उनका कोई भी नाम निरर्थक नहीं है सभी नामो में अलग -अलग गुण छिपे है भक्त अपने भावो के अनुसार उन्ही नामो से भजते हैशिव अपने भक्तो के समस्त पाप और त्रितापो का नाश करने में पूर्ण समर्थ है |
महा मृत्युंजय महाकाल
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यह सभी को मालूम है कि कोई भी मृत्यु को जीत नहीं सकता मगर शिव एक मात्र ऐसे देवता है जिहोने मृत्यु पर भी विजय प्राप्त की है और जिन्होंने हर बार मृत्यु को पराजित किया है तभी तो शिव को महामृत्युंजय के नाम से प्रसिद्धी प्राप्त हुई शिव को देख करके काल भी डरके मारे भाग खड़ा होता है एक बार कामदेव ने शिव की तपस्या को
खंडित करने का दुस्साहस किया था जिसके परिणाम स्वरूप शिव ने अपने तीसरे नेत्र से आग वर्षा करके कामदेव को भस्म कर दिया था तब कामदेव की पत्नी रतिप्रिया ने शिव से प्रार्थना की और बहुत मिन्नतें की कि मेरे पति को वापिस जिन्दा कर दे क्योकि प्रभु बिना कामदेव के इस सृष्टि का सञ्चालन ही रूक जायेगा तब भगवान शंकर ने इस सृष्टि की भलाई के
लिए कामदेव को अपनी शक्ति से दुबारा जीवित करदिया कामदेव अपनी भूल के लिए शिव के पैरो में गिरकर माफ़ी मागने लगा तब शिव ने अभय का वरदान देते हुए कहा की कामदेव ऐसी गलती फिर से मत करना इस बार तो मैंने तुम्हारी पत्नी के कहने पर तुम्हे जीवन दान दे दिया है मगर आगे माफ़ नहीं करूँगा और इस प्रकार शिव ने दिखा दिया कि एक तरफ
वह मार सकते है तो दूसरी तरफ जिला भी सकते है और तभी से उनका नाम महामृत्युंजय पड गया काल शब्द अपने आप में गहरा अर्थ समेटे हुए है काल माने समय भी होता है और काल माने मृत्यु भी होती है मगर ये दोनों ही स्थिति मनुष्य के हाथ नहीं है मनुष्य समय को अपने अनुसार नहीं चला सकता और ना ही मृत्यु को जीत सकता है वह जीवन में सदैव
पराजित होता है और परिस्तिथियों के अनुसारजीवन यापन करता है मनुष्य सदैव ही कॉल या मृत्यु के भय से चिंतित रहता है और वह हर क्षण काल के मुख में रहता है यहाँ सवाल ये उठता है कि हम काल पर विजय प्राप्त करने के लिए क्या करे क्योकि हमारी विचार शक्ति सीमित है और प्रत्येक वस्तु सीमा काल में बंधी हुई है किन्तु काल को सीमा में नहीं
बांधा जा सकता वह असीमित होता है और जो असीमित है वही अनंत भी होता है इसी को सृष्टि और आदि सृष्टिकर्ता कहते है काल की गति में अनेक शक्तिया उत्पन्न और विलय होती है इसी प्रकार से सभी देवी देवता काल से बंधे हुए है काल से जहा सभी देवी देवता प्रतिबंधित है समस्त गति भी उनके अनुसार है उसी काल के देव महाकाल शिव है शिव की
साधना करके हम भी काल को समझने में समर्थ हो सकते है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को शिव साधना या महामृत्युंजय साधना अवश्य करनी चाहिए जिससे वह काल की गति से बच सके महाकाल साधना कर साधक इतना समर्थ हो जाता है कि वह अपने शत्रुओ को परास्त कर सके यह साधना कर वह अपने शत्रुओ के समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देता है
कि उसके शत्रुओ की स्थिति अत्यंत दयनीय बन जाती है और उसमे वह सामर्थ्य नहीं रह जाता कि वह साधक के विरूद्ध कुछ करने का साहस कर सके शत्रु साधक से इतने भयभीत रहने लगते है कि साधक के अनिष्ट के बारे में जितना सोचते है उतना ही स्वयं का बुरा हो जाता है इसीलिए व्यक्ति को महाकाल की साधना पूजा पाठ अवश्य करना चाहिए वास्तव में शिव
की साधना ,पूजा पाठ से देह में एक तेजस्विता और परिवर्तन आने लगता है और बाधाये साधरण प्रतीत होने लगती है तथा संकल्प शक्ति दृढ हो जाने से जिस कार्य का संकल्प लेते है वह शीघ्र ही पूर्ण हो जाता है और निश्चित रूप से शत्रु बाधा समाप्त होती ही है इसिलए हम सभी को कालो के काल महादेव का हृदय में स्थापन करना चाहिए जिससे काल या डर समाप्त हो सके |
खंडित करने का दुस्साहस किया था जिसके परिणाम स्वरूप शिव ने अपने तीसरे नेत्र से आग वर्षा करके कामदेव को भस्म कर दिया था तब कामदेव की पत्नी रतिप्रिया ने शिव से प्रार्थना की और बहुत मिन्नतें की कि मेरे पति को वापिस जिन्दा कर दे क्योकि प्रभु बिना कामदेव के इस सृष्टि का सञ्चालन ही रूक जायेगा तब भगवान शंकर ने इस सृष्टि की भलाई के
लिए कामदेव को अपनी शक्ति से दुबारा जीवित करदिया कामदेव अपनी भूल के लिए शिव के पैरो में गिरकर माफ़ी मागने लगा तब शिव ने अभय का वरदान देते हुए कहा की कामदेव ऐसी गलती फिर से मत करना इस बार तो मैंने तुम्हारी पत्नी के कहने पर तुम्हे जीवन दान दे दिया है मगर आगे माफ़ नहीं करूँगा और इस प्रकार शिव ने दिखा दिया कि एक तरफ
वह मार सकते है तो दूसरी तरफ जिला भी सकते है और तभी से उनका नाम महामृत्युंजय पड गया काल शब्द अपने आप में गहरा अर्थ समेटे हुए है काल माने समय भी होता है और काल माने मृत्यु भी होती है मगर ये दोनों ही स्थिति मनुष्य के हाथ नहीं है मनुष्य समय को अपने अनुसार नहीं चला सकता और ना ही मृत्यु को जीत सकता है वह जीवन में सदैव
पराजित होता है और परिस्तिथियों के अनुसारजीवन यापन करता है मनुष्य सदैव ही कॉल या मृत्यु के भय से चिंतित रहता है और वह हर क्षण काल के मुख में रहता है यहाँ सवाल ये उठता है कि हम काल पर विजय प्राप्त करने के लिए क्या करे क्योकि हमारी विचार शक्ति सीमित है और प्रत्येक वस्तु सीमा काल में बंधी हुई है किन्तु काल को सीमा में नहीं
बांधा जा सकता वह असीमित होता है और जो असीमित है वही अनंत भी होता है इसी को सृष्टि और आदि सृष्टिकर्ता कहते है काल की गति में अनेक शक्तिया उत्पन्न और विलय होती है इसी प्रकार से सभी देवी देवता काल से बंधे हुए है काल से जहा सभी देवी देवता प्रतिबंधित है समस्त गति भी उनके अनुसार है उसी काल के देव महाकाल शिव है शिव की
साधना करके हम भी काल को समझने में समर्थ हो सकते है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को शिव साधना या महामृत्युंजय साधना अवश्य करनी चाहिए जिससे वह काल की गति से बच सके महाकाल साधना कर साधक इतना समर्थ हो जाता है कि वह अपने शत्रुओ को परास्त कर सके यह साधना कर वह अपने शत्रुओ के समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देता है
कि उसके शत्रुओ की स्थिति अत्यंत दयनीय बन जाती है और उसमे वह सामर्थ्य नहीं रह जाता कि वह साधक के विरूद्ध कुछ करने का साहस कर सके शत्रु साधक से इतने भयभीत रहने लगते है कि साधक के अनिष्ट के बारे में जितना सोचते है उतना ही स्वयं का बुरा हो जाता है इसीलिए व्यक्ति को महाकाल की साधना पूजा पाठ अवश्य करना चाहिए वास्तव में शिव
की साधना ,पूजा पाठ से देह में एक तेजस्विता और परिवर्तन आने लगता है और बाधाये साधरण प्रतीत होने लगती है तथा संकल्प शक्ति दृढ हो जाने से जिस कार्य का संकल्प लेते है वह शीघ्र ही पूर्ण हो जाता है और निश्चित रूप से शत्रु बाधा समाप्त होती ही है इसिलए हम सभी को कालो के काल महादेव का हृदय में स्थापन करना चाहिए जिससे काल या डर समाप्त हो सके |
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