योगी चिंतन (YOGI CHINTAN)
***********************
परमपूज्य गुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी
प्रेम की साकार मूर्ति
***********************
परमपूज्य गुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी
प्रेम की साकार मूर्ति
संसार की समस्त
सिद्धियो व नव निधियो के स्वामी
परमेष्ठी गुरु मेरे प्राणाधार
********************************
********************************
writer : Harikant sharmaExperience of Sadhna :33years
Subject: Yog cintan
Blog Name :yogichintan
(योगी चिंतन )
विषय वस्तु ,
yogichintan विचारधारा
में जनकल्याण की भावना निहित है जिसके फलस्वरूप इस ज्ञान को बाटने की प्रबल इच्छा
व्याप्त हुई क्योकि श्री गुरु चरणों की कृपा के बिना कोई साधना सफल नहीं
होती और ऐसे गुरु जो परमेष्ठी लेबिल के होते है वास्तव में वह ईश्वर की देह बदलकर
अवतारी महापुरुष के रूप में सम्पूर्ण शक्ति के साथ इस प्रथ्वी पर सशरीर
हमारे आपके बीच उपस्थित रहते है सही मायने में योग का कार्य क्षेत्र बहुत
बड़ा है जिसमे हम जो कुछ करते है सब आ जाता है चाहे विज्ञान हो या अध्यात्म या फिर
भोतिक जीवन की आनेकानेक समस्या सब इस योग चिंतन के अंतर्गत आती है सच में कहू तो
विज्ञान जहा ख़त्म होता है अध्यात्म वहा से शुरू होता है |किस प्रकार से इस जीवन को एकदम उचाई पर उछाला जा
सकता है यह सब एक व्यक्ति योगी चिंतन के माध्यम से ही संभव कर सकता है | इन्ही विषयों को लेकर योग की अनेक साधनाओ के
माध्यम से सभी समस्याओ को दूर करने की कोशिश रहेगी वह चाहे धन की समस्या हो या
शत्रु बाधा हो ,व्यपार न चलना ,रोग पीड़ा मिटाने हेतु
,दरिद्रता का सम्पूर्ण नाश , राज्य बाधा और संसार की कोई भी समस्या हो योग के
द्वारा समाधान संभव है इसके माध्यम से भगवान् की भक्ति प्रमुख उद्देश्य है
जिससे जीवन में एक शांति प्राप्त हो हम ईश्वर से प्रेम करे तभी तो मानव
प्रेम बढेगा प्रेम में बड़ी शक्ति होती है जिस प्रकार बिजली में करेंट होता है उसी
प्रकार प्रेम की शक्ति में हजार गुना ज्यादा करेंट होता है अगर मानव शरीर
में इसे प्रवाहित किया जाए तो हजार टुकड़े हो जायेगे इसीलिए सबसे पहले आन्तरिक
शुद्धि कर उस करेंट को झेलने की ताकत साधनाओ के द्वारा प्राप्त करनी पड़ती है तब
भगवान या उच्चकोटि का गुरु हमारे अन्दर उस दिव्य प्रेम को प्रवाहित करता है
इस जगह दिव्य प्रेम और सांसारिक प्रेम में बहुत बड़ा तात्विक अंतर है अतः योग चिंतन, विज्ञान से बहुत ऊपर की चीज है इस रहस्य को समझना
इतना असान नहीं है |श्री श्री स्वामी निखिलेश्वरानंद जी सम्पूर्ण
शक्तियों के साथ हमारे बीच उपस्थित थे उन्हे देखकर लगता था स्वयं नारायण इस
धरा पर आये है उन्हें अपने बीच पाकर लगता था की योग ,वेद पुराण,मन्त्र .तंत्र, यज्ञ ,जप ,तप की धारा फिर
से भारत भूमि पर सम्पूर्णता के साथ बहने लगी है |
No comments:
Post a Comment